कुँए का मेंढक , यह उपमा परफेक्ट होगी। किसी ने खास लोगो के लिए सही कहानी बनाई है।
पर समस्या यह है की बार बार सुन ने के बावजूद भी हम उनसे कुछ सीखते नहीं। उदहारण दुसरो को देते रहेंगे ,सुन सुन कर आगे से आगे फैलाते जाएंगे पर , कभी खुद पर लागू नहीं करेंगे। हम नहीं मानेंगे दरअसल हम भी कही न कही उसी कुएं के मेंढक है।
हाँ , मैं यहाँ कोई नयी और अलग बात नहीं कर रहा , बस उसी बात को फिर दोहरा रहा हु।
जिसने जो देखा, जो सुना, वो ही दुनिया हो गया ।
हमने उस मेंढक पे बहुत ठहाके लगाए , उसकी बेवकूफी पे तरस भी आया । पर हममे और उसमे कुछ भी अंतर नहीं , अंतर है तो बस वो मेंढक है , और हम इंसान और वो भी स्वकथित विद्वान इंसान।
यह काल्पनिक कहानी है , हम इंसानो द्वारा बनाई गयी थी। और हम इंसानो के लिए ही बनाई गयी थी। पर फिर भी देखो हम मेंढके पे तरस खाते है। कितनी दुःखद बात है न। तरस तो खुद पर आना चाहिए, जो की नहीं आएगा।
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thnx for following