डर की परिभाषा :
"शर्माना और हिचकिचाना भी एक तरह से डर का ही प्रयाय है "
डर सबसे ताकतवर शक्ति है। यह हमसे कुछ भी करवा सकता है। यह हमें हमारे ही खिलाफ खड़ा कर देने की क्षमता रखता है।
डर का साम्राज्य कैसे फैला :
जैसा की सब जानते है , आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है , और एक अज्ञात हीरो की जरूरत अथवा आवश्यकता तब आन पड़ी, जब इंसान भावनाओ को समझने लगा। और तब यही भावनाए इंसानो को अन्य जानवरो से भिन्न करने लगी। यह वो घङी थी जब एक बन्दर जैसा दिखने वाला जीव इंसान कहलाने वाला था।उन्हें ख़ुशी , और दुःख का एहसास होने लगा , उन्हें अपने - पराये का एहसास होने लगा।
और इसी के साथ एक और भावना ने उनके दिमाग में जन्म ले लिया था, "डर" । जब सुख और दुःख यहाँ शुरुआती दौर पे थे तो तीसरी भावना का जन्म होना भी काफी तार्किक था, और हुआ भी , हमने उसे डर के नाम से जाना। यहाँ इस पड़ाव पर उन्हें सुख के चले जाने का डर सताने लगा , और दुःख के आ जाने का डर सताने लगा। और यहाँ इसी मोड़ पे एक क्रन्तिकारी भावना (डर) ने जन्म ले लिया था। जिसने सब कुछ बदल कर रख दिया।
इस भावना ने सबसे पहले हमारी काबिलियत को काबू कर लिया। जिसने अविश्वास को जगह बनाने का मौका दिया। और हमने काफी हद तक आत्मविश्वाश को खो दिया।
आज भी हम तब घबराते है अथवा शरमाते है जब हमें किसी चीज़ के बारे प्रयाप्त जानकारी न हो।
हम भूत प्रेतो से डरते है , क्योंकि हम उनके बारे में कुछ खास नही जानते। जिस दिन जान जाएंगे डर होगा ही नही। वैसे ही हम ईश्वर से डरते है , हमें गणित विषय से डर लगता है , और हमें अन्य लोगो से अथवा अपने से बेहतर व्यक्ति से भी डर लगता है।
हम तब घबराते है जब हमें साइकिल को चलाना नहीं आता , लेकिन धीरे धीरे सब समझ आ जाता है , और हम सिख जाते है , वो विशेष प्रकार का डर नष्ट अथवा ख़त्म हो जाता है।
अतः डर का सामना करना ही समाधान है।
एक रिसर्च के मुताबिक इंसान केवल दो तरह के डर के साथ ही जन्म लेता है, अथवा हमारे जन्मजात डर , ऐसे डर तब महसूस होते है जब :
इनके अलावा सभी प्रकार के डर वो इसी दुनिया से सीखता है।
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THANX
"कुछ ऐसा घटने की आशंका , जिसके घटने की उम्मीद न हो। अथवा हम नहीं चाहते की वो अवांशित घटना घटे।" डर है।"जिन चीज़ों को हम नहीं समझ पाते अथवा नहीं समझ पाए है , दरअसल एक तरह से वो असमंझस ही डर है "
"शर्माना और हिचकिचाना भी एक तरह से डर का ही प्रयाय है "
डर सबसे ताकतवर शक्ति है। यह हमसे कुछ भी करवा सकता है। यह हमें हमारे ही खिलाफ खड़ा कर देने की क्षमता रखता है।
डर का साम्राज्य कैसे फैला :
जैसा की सब जानते है , आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है , और एक अज्ञात हीरो की जरूरत अथवा आवश्यकता तब आन पड़ी, जब इंसान भावनाओ को समझने लगा। और तब यही भावनाए इंसानो को अन्य जानवरो से भिन्न करने लगी। यह वो घङी थी जब एक बन्दर जैसा दिखने वाला जीव इंसान कहलाने वाला था।उन्हें ख़ुशी , और दुःख का एहसास होने लगा , उन्हें अपने - पराये का एहसास होने लगा।
और इसी के साथ एक और भावना ने उनके दिमाग में जन्म ले लिया था, "डर" । जब सुख और दुःख यहाँ शुरुआती दौर पे थे तो तीसरी भावना का जन्म होना भी काफी तार्किक था, और हुआ भी , हमने उसे डर के नाम से जाना। यहाँ इस पड़ाव पर उन्हें सुख के चले जाने का डर सताने लगा , और दुःख के आ जाने का डर सताने लगा। और यहाँ इसी मोड़ पे एक क्रन्तिकारी भावना (डर) ने जन्म ले लिया था। जिसने सब कुछ बदल कर रख दिया।
इस भावना ने सबसे पहले हमारी काबिलियत को काबू कर लिया। जिसने अविश्वास को जगह बनाने का मौका दिया। और हमने काफी हद तक आत्मविश्वाश को खो दिया।
आज भी हम तब घबराते है अथवा शरमाते है जब हमें किसी चीज़ के बारे प्रयाप्त जानकारी न हो।
हम भूत प्रेतो से डरते है , क्योंकि हम उनके बारे में कुछ खास नही जानते। जिस दिन जान जाएंगे डर होगा ही नही। वैसे ही हम ईश्वर से डरते है , हमें गणित विषय से डर लगता है , और हमें अन्य लोगो से अथवा अपने से बेहतर व्यक्ति से भी डर लगता है।
हम तब घबराते है जब हमें साइकिल को चलाना नहीं आता , लेकिन धीरे धीरे सब समझ आ जाता है , और हम सिख जाते है , वो विशेष प्रकार का डर नष्ट अथवा ख़त्म हो जाता है।
अतः डर का सामना करना ही समाधान है।
एक रिसर्च के मुताबिक इंसान केवल दो तरह के डर के साथ ही जन्म लेता है, अथवा हमारे जन्मजात डर , ऐसे डर तब महसूस होते है जब :
१. ऊंचाई से गिर रहे हो , |
२. बेहद शोरगुल सुनने से।
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इनके अलावा सभी प्रकार के डर वो इसी दुनिया से सीखता है।
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