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Why God doesn't appear ?

god
भगवन है क्या ?
हमने जन्म से लेकर आज तक बहुत सुना भगवन के बारे में, पर आखिर भगवन है क्या?




ईश्वर की परिभाषा क्या है ? 
वक्त का जवाब : कइयों के लिए यह एक उम्मीद है।  साथ ही साथ आप  इसे "बहाना" भी कह सकते  है। वैसे तो इसके कई प्रयायवासी शब्द है ,जैसे डर, मज़बूरी, ओपचारिकता, विश्वास आदि , पर सरल शब्दो में उम्मीद को इसकी पहचान बता सकते है।
         उम्मीद - यह उम्मीद है क्योंकि कुछ कामो के लिए , माफ़ करना कई कामो के लिए ईश्वर की मदद की जरूरत रहती है , फिर चाहे वो मदद प्रत्यक्ष हो अथवा अप्रत्यक्ष। शायद मैने कुछ गलत कह दिया, एक बार फिर से माफ़ करना , केवल अप्रत्यक्ष मदद की उम्मीद।
         बहाना- भगवन वो है, जिसे किसी भी नयी, अजीबोगरीब और नामुमकिन लगने वाली घटना के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। इसीलिए इसे एक बहाना कहने में जरा भी हर्ज नहीं होना चाहिए । यह बहाना है, अपनी नासमझी को छुपाने का , बहाना है तर्क को नहीं समझ पाने का।
         हथियार- कुछ लोगो के लिए ईश्वर एक हथियार है , वे इस हथियार को काफी समझदारी से उपयोग करते है। आप अच्छे से जानते है कि , कैसे?
           इसी तरह ईश्वर की परिभाषा अलग अलग परिस्थिति में अलग अलग है।

सच्चाई - ईश्वर एक कल्पना है।

वो कैसा दिखता है, हम उसे किस रूप में देखते है ?
परंपरागत जवाब : वो बेहद खूबसूरत है। वैसे तो ईश्वर के रूपो की लिस्ट लंबी है, पर शायद सबकी पहचान बता पाना मुश्किल है ,इस छोटे से आर्टिकल में। पर फिर भी कुछ के बारे में बताते है , ईश्वर के माथे पे मोर पंख होता है और बांसुरी भी , ईश्वर बानर जैसे दीखते है जिनकी एक पूंछ है , ईश्वर हाथी जैसे सूंड धारण किये हुए है , ईश्वर के माथे पे चाँद है और गंगा की धारा उनकी जटाओ से निकलती है, आदि ऐसे ही कई रूप है। 
वक्त का जवाब : जैसा हमने उसे बनाया। जैसा हमने उसे समझा।  जैसी एक ग्रुप ऑफ़ पीपल ने इसके रूप की एकमत होकर कल्पना की।
               
            और एक धर्म के दावे के हिसाब से इसके कुल ३३ करोड़ रूप है। और उन सबके रूप का में यहाँ जिक्र नहीं कर पाउँगा, क्योंकि आप इतना सह नहीं पाओगे। और सच कहु तो  न ही उन सभी के रूप के बारे में मुझे कोई जानकारी है, और न ही उन्हें है, जो रोज ये दावा करते है।  ३३ करोड़ तो छोड़ो , वे लोग आपको १ करोड़ भी नहीं बता सकते है , यहाँ तक की एक लाख की डिटेल भी आपके पसीने छोड़ देगी ।

           वास्तविकता : ईश्वर का कोई रूप रंग नहीं है। कुदरत को महसूस करना ही ईश्वर है। यानि आपके पास सारी तस्वीरे अथवा मुर्तिया किसी कल्पना मात्र के रूप है। उनका हकीकत से कोई ताल्लुक नहीं।

यह करता क्या है ?
परंपरागत जवाब : वो सब पर नजर रखता है। और सबको उसके कर्मो की सजा देता है। 
वक्त का जवाब : जवाब सुनकर जरा भी ख़ुशी होने वाली नहीं है।
जवाब है , वो कुछ नहीं करता है। जो करते है वो हम ही करते है , और वो है उम्मीद करना, खुद को दिलासा देने मात्र के लिए। और ये उम्मीद ही विश्वास में तब्दील हो जाती है। और आप जानते है फिर क्या होना है।

सबसे बड़ा सवाल, वो सामने क्यू नही आता ?
परंपरागत जवाब :उसे सामने आने की जरूरत क्यों है भला। , वो कलयुग में सामने नहीं आ सकते। , वो किसी को दिखाई नहीं देते। 
वक्त का जवाब  : अब जो है ही नही वो  सामने कैसे आ सकता है भला।
इस जवाब ने मानो दिल तोड़ ही दिया।

             हमारी संस्कृति में ईश्वर के अस्तित्व पे सवाल उठाने का सीधा यह मतलब निकल जाता है की आप पापी हो , अथवा आप उस धर्म से नफरत करते हो, उन स्वकथित विद्वानों के नजर में आप नीच हो ।  पर कोई भी सवहकथित विद्वान् उसके सवाल के जवाब नहीं देना चाहता, ताकि उसके जिज्ञासा को संतुष्ट किया जा सके । बजाय उस सवाल को सही जवाब से गलत ठहराने के , हम सामने वाले की जिज्ञासा को नीच करार देने में अपनी सारी समझदारी खर्च कर डालते है।
सवाल सुन कर भड़कना, और सवाल पूछने वाले पे टूट पड़ना , उसकी ऐसी हिम्मत(हिमाकत ) को ललकारना , यह सब तो समझदारो की निशानी नहीं, ।



         हम नास्तिक है।  हमारा उसे मानने का नजरिया अलग है। हमारा बस मानना है, अन्धविश्वास में भगवन नहीं। हम केवल इतना जानते है , कि हम भेड़ नहीं है। और न ही हमारे आँख पर पट्टी बंधी है। 
         हम भी भगवन के अस्तित्व को मानते है , पर केवल मात्र उसे ही जिस पर भरोसा हो, जिसे महसूस  किया है। 
         हां , यह सच है, वो शक्ति विद्यमान है इस जहाँ  में, भले ही आपने उसे कोई सा भी नाम दिया हो ,आप उस शक्ति को ईश्वर कह दो ,कोई हर्ज नहीं।  पर वो केवल हम लोगो के लिए ही नहीं है, पुरे ब्रह्माण्ड के लिए वो वही काम करती है , जो हमारे लिए करती है।  यानि ''निर्माण" और "विनाश", बस मात्र ये दो ही काम हमारा ईश्वर करता है । अगर हम जिन्दा है तो हम उसके "निर्माण" क्रिया  का हिस्सा है , यानि हम भी उसी के अंश है।  हमें उस शक्ति का सम्मान करना चाहिए , न की मांगने का तरीको में बदलाव करना। कभी १६ सोमवार करके तो , कभी चार धाम की पैदल यात्रा करके।  न ही किसी की बलि चढ़ाने की जरूरत है। 


                   जैसा की हम जानते है , हम यानि हमारा दिमाग उस शक्ति (यानि ईश्वर) का अंश है, क्योंकि यह भी उसके निर्माण कार्य का एक हिस्सा है। तो केवल यही वो ईश्वर है, जो आपकी हर मनोकामना पूरी कर सकता है। आप इससे कुछ भी मांग सकते है।  और यह उसे पूरी करने की पूरी काबिलियत रखता है।
                   मुझे नही पता बाकि के जो करोड़ो भगवान है , वो आपकी अरदास सुनते है या नही , पर इस भगवन को तुम हुक्म दे कर देखो , यह तुम्हारे हर मुमकिन हुक्म को पूरा करेगा।
                   
                   मेरी नजर में दो ही भगवन है:     1. Auto God
                                                               2. Manual God
                     1. पहला तो वो जिसे हुक्म या अरदास करने पर भी वो अपना काम करता रहेगा,आपकी चाप्लूशी की उसे जरूरत नहीं । यानि वो शक्ति , वो गुरत्वाकर्षण ऊर्जा, जिसके दो ही काम है निर्माण और विनाश । (auto god)
                     2. और दूसरा वो जो की पहले वाले भगवन का अंश है, यानि आप खुद अथवा आपका ब्रेन, जो की आपका हर हुक्म पूरा करने के लिए ही बना है , वो आपके किसी भी फरमाइस को पूरा करने की शानदार शक्ति रखता है। (manual god)
                   
                   
  निष्कर्ष      
          पहले वाले भगवन से उम्मीद रखना बेकार है, तो उसे वो करने दो जो उसे करना है, क्योंकि वो वही करेगा जो उसे करना है। यानि वो केवल तब ही आपके मुताबिक काम करेगा, जबकि आपकी इच्छा ही कुछ ऐसे काम की हो , जो की उसके सामान्य रूटीन की हो , जैसे की आपने माँगा की "काश की आज शाम को सूरज अस्त हो जाए , और चारो तरफ अँधेरा हो जाए"। केवल तब ही ऐसा लगेगा की उसने आपकी सुन ली। फिर ये सोचो की नहीं माँगा होता तो भी रात तो होती ही न। इसे इत्तेफाक कहना बेहतर शब्द होगा।

           यानि अब हमारे पास दूसरे भगवन को मानने का ऑप्शन रह गया है। अब इस भगवन के सामने गिड़गिड़ाने की जरूरत नही , इसे बस हुक्म दो ,  पूरी इच्छाशक्ति के साथ , बस आपका काम हो गया समझो।



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