क्या आप भी अपना एक बिज़नस करने जा रहे है। या करने के इच्छुक है। तो जान लीजिये इसकी बारीकियों को , जो की आपके काफी काम आ सकती है।
बिज़नस क्या होता है। और ये अस्तित्व में कैसे आया। आइये जानते है, बिज़नस से जुडी कुछ रोचक बातो के बारे में। तो सवाल है कि :
बिज़नस की परिभाषा क्या थी ? :
" कुछ के बदले कुछ " , आसान भाषा में मैं इसे उस समय के बिज़नस की पहचान अथवा परिभाषा के रूप में देखता हूँ । जिससे की एक दूसरे की जरूरत को पूरा किया जाता था।
बिज़नस की परिभाषा क्या हो गयी है ? :
कुछ भी बिक सकता है पर बेचने वाला चाहिए , बशर्ते मार्केटिंग सही हो । यानि एक तरह से देखा जाए तो मार्केटिंग को ही बिज़नस कहा जा सकता है।
मिलिए गैरी रॉस दहल से , इन्होंने सामान्य से दिखने वाले पत्थरो को पालतू बता कर करोड़ो रूपए बना लिए थे। और ये वही पत्थर थे जो आपके घर के आस पास बड़ी आसानी से मिल जाते है, उनमे कुछ भी स्पेशल नहीं था, उनमे स्पेशल था तो यह की उन्हें Gary Ross Dahl द्वारा बेच जा रहा है । और ये सब मुमकिन हुआ, क्योंकि इनकी मार्केटिंग बहुत अव्वल दर्जे की थी।
gary ross dahl |
तब और अब बिज़नस में बदलाव क्या हुआ है ?
"मार्केटिंग"। यही वो चीज़ है जो बिज़नस में नयी है। वरना खरीदार और विक्रेता तो पहले भी थे।
चलो अब अन्य मुद्दों के बारे में भी चर्चा की जाए ,
आज मार्किट में मूल रूप से तीन तरह की वस्तुओ का बिज़नस हो रहा है :
1. वस्तुए जो की अनिवार्य है : बिज़नस को जन्म 'जरुरत' ने दिया। यानि इसका का मुख्य आधार अथवा नींव "जरूरत" है, जो की उस समय ''मुलभुत जरूरत'' मात्र ही थी । यानि यदि आप किसी की जरूरत पूरी करने के बदले कोई मुनाफा कमा रहे हो, तो बिज़नस कर रहे हो। "मुलभुत जरूरत ", जिसकी मार्किट में हमेशा से डिमांड है। और उस जरूरत को मूल्य के बदले पूरा करना ही बिजनेस है।
इनके उदाहरण : गेहू , आटा , सब्जी , व्हीकल , मकान ,कपडे , आदि।
2. वस्तुए जो की वैकल्पिक जरूरत है : पर धीरे धीरे वक्त के साथ साथ इसमें बदलाव हुआ। अब तक इसी कड़ी में एक और तत्व जुड़ चूका था, वो था "विलासिता" । धीरे धीरे लोगो में ट्रेंड होने लगा , उन वस्तुओ को खरीदने का, जिनका वास्तव में उनके जरूरत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था, या कहे की जिनकी वास्तव में जरूरत न के बराबर थी। यह अस्तित्व में तब आए जब लोगो को उनके आर्थिक रूप से सक्षम होने का प्रमाण देने की जरूरत महसूस होने लगी।
ऐसे बिज़नस इस नियम पे चलते है कि "जरूरत को पैदा किया जाए", हालाँकि मूल रूप से उस प्रोडक्ट की जरूरत नहीं , पर पब्लिक अथवा उपभोक्ता को महसूस कराया जाए की उसे इस प्रोडक्ट की जरूरत है, किसी चीज़ को जरूरत में तब्दील कर देना। आप इस तरीके अथवा तकनीक को "जबरदस्ती करना" कह सकते है। (जो की मार्केटिंग का चैप्टर है )
ऐसे बिज़नस के उदहारण : स्मार्टफोन , फिल्म , लग्जरी वस्तुए , फेस क्रीम , लिपस्टिक , खेल (क्रिकेट , WWE , football) आदि।
वैसे ही यदि आपको कपडे खरीदने है , जो की अनिवार्य है यानि पहली जरूरत है , तो उस कपडे के व्यापर के साथ साथ पॉलीबैग और पैकिंग मटेरियल का बिज़नस भी अर्थव्यवस्था में अपनी भागीदारी दर्ज करता है। जो की हमें महसूस नहीं होता ,पर अस्तित्व बनाए हुए है , और ऐसे बिज़नस छुपे हुए (hidden business) बिज़नस कहलाते है, और मार्केट में अपनी मांग बनाए हुए है।
तो इस तरह "स्मार्टफोन" के बिज़नस के साथ साथ "फोनकेस" और "पैकिंग मटेरियल" के बिज़नस की भी अपनी उपस्थिति है। इन्हें हम सपोर्टिंग बिज़नस भी कह सकते है।
इनके उदहारण: पैकिंग मटेरियल , कोयला , खदान , आदि। इनके अलावा ऐसे तरह की वस्तुओ के बिज़नस में "सेवाए " भी शामिल है। जैसे : अकाउंटेंट , बैंक और हवाले का बिज़नस , फाइनेंसियल एडवाइजर , आदि।
और आज हमें इन तीनो तरह के 'वस्तुओ के व्यापर' की जरूरत रहती है, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से , पर आज इन तीनो तरह के बिज़नस आप कर सकते है। और तीनो ही तरह के बिज़नस एक दूसरे पे निर्भर है।
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धन्यवाद।
"यदि कहीँ कोई प्रॉब्लम है, तो वहाँ अवसर है। आप ने हल निकाल लिया तो वो बिज़नस है। "
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