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Lesson 2 :Know your God | Know your Brain

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Read your Brain

         जैसा की हमने know your god lesson 1 में जाना की इंसान के दिमाग की शुरआत कैसे हुई।  तो आज हम आगे जानेंगे की उस दिमाग की शक्ति और कमजोरियों के बारे में। 




तो जैसा कि हम सब जानते है, हर शक्ति का एक तोड़ होता है। यहाँ अगर कुछ पॉजिटिव है, तो कुछ नेगेटिव होना भी तय ही है।

ठीक वैसे ही हमारे दिमाग भी शक्तियों के साथ साथ कमजोरिया धारण किये हुए है। भले ही यह धरती का सबसे बुद्धिमान दिमाग कहलाता है।

यह जितना जहीन होता जाता है, उसकी कमजोरिया भी उसी गति से बढ़ती रहती है।


           दिमाग वैसे तो बहुत ही शक्तिशाली है। इसके साथ ही साथ बहुत कमजोर बिंदु भी है। और यह इन कमजोरियों और शक्तियों  का अनोखा मिश्रण है। ये इतना जटिल और अनोखा  है , कि  इसे पूरी तरह से समझना फ़िलहाल  इंसान के बस की बात नही। या यूँ कह की यह हमारी उम्मीद से  तो बहुत  ही ज्यादा ताकतवर है।  इस पर काबू पाना मतलब, मानो  सब कुछ हासिल कर लेना। पर इसकी बहुत सी कमजोरिया भी है।  हम यहाँ दिमाग की एक एक करके सभी क्रियाओ के बारे समझेंगे। हम जानेंगे की दिमाग करता क्या है और कैसे करता है । और उन्ही में से कुछ बिन्दुओ पर चर्चा करेंगे, जो की निम्न है :

१. जानकारियो का संकीर्णिकरण अथवा सरलीकरण 
           दिमाग की कई सारी क्रियाओ में से यह भी एक सामान्य सी क्रिया है।  अब इसके अपने कुछ फायदे है ,  और साथ ही साथ देखा जाए , तो यह एक कमजोरी भी है। 

तो दिमाग की इस क्रिया के हमें क्या फायदे है: आइये जानते है ,

         चूँकि दिमाग को कई सारी क्रियाए करनी होती है , वो भी कम समय में, तो दिमाग उन तमाम सामान्य रूप से बार बार घटित होनी वाली घटनाओ को संकीर्ण करके उनके आधार बिन्दुओ को छाँट कर उन्हें स्टोरेज कर देता है , और उन्हें अलग से प्रोसेस करता है , ताकि कम से कम ऊर्जा और समय खर्च हो।

यानि दिमाग क्रियाओ की छंटनी करता है , जो क्रियाए बार बार दोहराई जा रही है , उन्हें बाकि क्रियाओ से अलग करके, उनकी अलग से प्रोसेसिंग करता है।  और उन क्रियाओ की प्रोसेस की प्रक्रिया को शोर्ट कर देता है ,और उसे संग्रहित कर लेता है , ताकि दिमाग को फिर उसी  काम के लिए हर बार वो सारी प्रक्रिया न करनी पड़े,जो की एक नयी क्रिया के लिए  करनी होती है, और अनुचित ऊर्जा खर्च न करनी पड़े , जो की एक नए काम अथवा क्रिया के लिए खर्च करनी होती है।
यहाँ नयी क्रिया में होने वाली शुरआती प्रोसेस से अर्थ है की ,जैसे कि , उस नयी  क्रिया को पहचानना , उन्हें नाम देना ,उनका विषय क्या है ? यह जानना , और अंतिम प्रोसेस करना आदि।

एक लाइन में परिभाषित किया जाए तो ,"रेगुलर काम को सीधे अंतिम प्रोसेस करना ही दिमाग द्वारा संकीर्णिकरण करके सरलीकरण कहलाता है।"
हमारा दिमाग बार बार दोहराई जाने वाली घटनाओ को एक प्रक्रिया बना देता है। जो कि स्वतः मोड में डाल दिया जाता है।  जिसे दिमाग द्वारा भविष्य में भी बार बार प्रोसेस किया जाना है। जब जब भी वो क्रिया दोहराई जानी  है।
इस से दिमाग को काम करने में काफी मदद मिलती है।  और हमें पता ही नहीं चलता और काम हो जाता है।

           लो अब इससे जुड़े साइड इफेक्ट्स भी जान लेते है :

          कई बार होता है की  दो समान लगने वाली क्रियाओ को हमारा दिमाग एक ही मान लेता है, जो की वास्तव में अलग अलग होती है, और उन्हें  भी हमारा दिमाग द्वारा सीधे अंतिम प्रोसेस कर दिया जाता है। जिससे हमारे द्वारा मिथ और भ्रम जैसी चीज़ों को स्वीकार कर दिया जाता है।  चूँकि वो दूसरी सामान लगने वाली क्रिया ,सच की हमशक्ल लगती  है , पर वास्तविक सच नहीं होती । और फलस्वरूप तर्क को तवज्जो नहीं मिलती , और तर्क झूठला दिया जाता है, हमारे इसी  दुनिया के सबसे बुद्धिमान दिमाग द्वारा।

अक्षर ऐसा भी  होता है कि  जिस चीज़ के बारे में सबसे ज्याद सुना हो अथवा जिसे सबसे ज्यादा उपयोग किया गया हो , उसके हम तार्किक रूप से गहराई में जाने की कोशिश ही नहीं करते , क्योंकि शायद जरूरत ही नहीं पड़ती। और नतीजन  वो सब ऑटो मोड में चल रहा होता है।
क्योंकि दिमाग उन्हें तब से महसूस और सुनते आ रहा है , जबसे उसका विकास ही नहीं हुआ था। यानि बालपन से हम वो चीज़ करते आ रहे होते है। इसलिए दिमाग के लिए वो बात नयी नहीं होती।  और वो ही अंतिम सच होती है ,हमारे  दिमाग के लिए।
इसलिए उससे रिलेटेड कोई क्रिया आने पर दिमाग ऐसे रियेक्ट करता है।  तब दिमाग अपना लॉजिकल प्रोसेस काम में नहीं लेगा , क्योंकि वो दिमाग ने पहले से ही शॉर्टलिस्टेड किया हुआ होता है। वो सीधे फाइनल अथवा अंतिम प्रोसेस में ही जाता है।
यह भी ठीक  ही है जैसे रोडवेज बस में पास वाले पैसेंजर हर दिन सफर करते है , तो धीरे धीरे कंडक्टर उनके पास चेक करना ही छोड़ देता है।  सीधे ही पहचान लेता है की ये तो रोज वाला पैसेंजर है।  भले किसी दिन उसका पास उसके साथ न हो , या उसके पास की वैलिडिटी ख़त्म हो चुकी हो। 
ऐसा  इसलिए भी होता है , क्यूंकि दिमाग ने उसे अपना लिया होता है।  हमारी इंसानी फितरत है , कि  हर नयी चीज़ अथवा क्रिया पर हम लॉजिकल प्रोसेस अप्लाई करते है , और सवाल करते है ,ताकि उसे और अच्छे से और बेहतर ढंग से जान लिया जा सके, बाद में ही `दिमाग द्वारा उसे फाइनल प्रोसेस किया जाता है। और इसके विपरीत ,साधारणतया हम परम्परागत अथवा पुरानी चीज़ों पर सवाल करने में ऊर्जा और समय दोनों नहीं गवांते, और यह सही भी है।  हर नया इंसान ( बच्चा ) अथवा दिमाग अगर शुरू से शुरुआत करेगा , तो वो कभी भी विकास कर ही नहीं पायेगा।  उसे पहले से एकत्रित एवम हस्तांतरित किये गए आंकड़ो की मदद से आगे का ज्ञान हासिल करना होता है , और करना ही चाहिए।  और फिर उस अपडेटेड ज्ञान को नयी पीढ़ी को हस्तांतरित करना होता है , ताकि विकास का क्रम चलता रहे।  और यही प्रकृति का नियम है।
पर क्या तब भी उसे यानि हमारे दिमाग को  उन आंकड़ो अथवा जानकारी पर एक बार पुनः गहराई से ध्यान नहीं देना चाहिए।  जबकि उसे हस्तांतरित किये गए आंकड़ो अथवा उसके  द्वारा अर्जित किये गए आंकड़ो अथवा जानकारी के  गलत होने की शंका भी आस पास मंडरा रही हो , और हमें पता ही न चला हो। 

चलो उदहारण से समझते है , भारत में जब मोबाइल फ़ोन लॉंच हुआ था। तब हर एक भारतीय का एक ही सवाल था की ये "मोबाइल फ़ोन " क्या होता है, और किसी समझदार भाई ने बता दिया होगा की "मोबाइल फ़ोन  " यानि अपनों से बात करने का साधन , जिससे कभी भी , कोई भी , और कही भी,  बात कर सकता है।            तब तक़रीबन सभी भारतीयों के दिमाग ने एक गांठ बांध ली की "मोबाइल फ़ोन " यानि बात करने का साधन, जिससे कही भी, कभी भी बात कर सकते है।  लेकिन दुविधा तब हुई जब हमने केवल "मोबाइल " शब्द को भी वही परिभाषा से नवाजा, जबकि इसका वास्तविक अर्थ कुछ और है। उनके लिए "मोबाइल फ़ोन"और "मोबाइल"में रत्ती भर का अंतर नही था।  और आज आलम यह है कि , आज भी अगर मोबाइल नाम से कोई अन्य प्रोडक्ट मार्किट में  आ जाती है, और यह खबर किसी को केवल मात्र सुना दी जाती है, कि भाई बाजार में यह नयी चीज़ आई है , तो उसके दिमाग की  पहली कल्पना होगी की जरूर बाजार में कोई नया " फ़ोन "आया है। फिर चाहे वो नयी चीज़ कोई गाड़ी या कोई ट्रावेल्लिंग बैग ही क्यों न हो।

एक और उदहारण दिया जाए तो शायद हम में से कइयो को बुरा लगने के साथ साथ अजीब भी लगे।
पर वो हालात को देखते हुए वो उदहारण यहाँ एक दम सही बैठता है। भले ही हम इस उदहारण से सहमत न हो।  और हमारी यह असहमति ही इस उदाहरण को सही ठहरती है। और उनकी यह असहमति और उनका यही रिएक्शन  ही दिमाग की  इस कमजोरी को और गहरे प्रभावी ढंग से प्रमाणित करता है। या यूँ कहु की यह उदहारण के साथ साथ प्रमाण भी है।
माफ़ करे लेकिन मैं उस उदाहरण के रूप में एक काफी फेमस अथवा लोकप्रिय शब्द, "ईश्वर" को ले रहा हु। 
जैसा की हम सब जानते है , यह शब्द हमारे लिए जरा सा भी नया नहीं है।  बच्चा बच्चा इस शब्द से वाकिफ है।  इसलिए इस से अच्छा तो कोई उदहारण हो ही नहीं सकता। पर सवाल यह है की इस लोकप्रिय शब्द को हम कितने अच्छे तरीके से जानते है ? वो भी अभी पता चल जाएगा। 
यह शब्द "ईश्वर" भी हूबहू "मोबाइल" शब्द जैसा हो गया है। हमारे जीवन में कोई भी ऐसी घटना जो पहले घटित न हुई हो, और अचानक घटित हो जाती है, उसे ईश्वरीय घटना अथवा चमत्कार मान लिया जाता है।  इसके पीछे भी कारण है , हमें हर नयी चीज़  नामुमकिन लगती है , और नामुमकिन चीज़ तो केवल ईश्वर ही कर सकता है , इसलिए उसे हमारे द्वारा किया गया  चमत्कार , का नाम दे दिया जाता  है , जो की ईश्वर द्वारा किया गया एक्ट कहलाता है।  जैसे की आज किसी हवाई जहाज को  भूतकाल में ले जाकर  उसे चलाया जाता तो यह उनके लिए , चमत्कार होता।  और वो  उस पायलट की पूजा करनी शुरू कर देते। 
आज भी जब कोई अनहोनी घटित होती है , तो कई लोग तुरंत कह देते है , "देखा ! मेने कहा था न , की मंगलवार को नाख़ून मत काटना , अब देखो हो गया न  काण्ड। " और हमारा दिमाग भी तुरंत उन घटनाओ की कैलकुलेशन कर के सहमत हो जाता है।  असल में हमारा दिमाग तब वही कैलकुलेशन कर रहा होता है , जो असल में उस सामने वाले व्यक्ति ने बोली होती है , दिमाग उसी बात से रिलेटेड इक्कठे किये गए डाटा  को एनालिसिस कर के हमें बता देता है कि "हाँ ! ये व्यक्ति सही बोल रहा है , क्योंकि आपके सिस्टम में सेव की गयी सारी फाइल्स (जो की बचपन से सुनते आ रहे होते है , वही बाते दिमाग में घर कर जाती है  या सेव हो जाती है )की कैल्क्युलाइटों के हिसाब से इसी और इसरा कर रही है, जो ये जनाब बोल रहे है , वो बाते  ही इस अनहोनी का कारण  है , धन्यवाद् "

परम्परागत अथवा पुरानी घटनाए ( वे कहानिया अथवा तथ्य जो की पहले घटित हो चुके है ) हमारे लिए नए नहीं होते है , हमने उन्हें अपना लिया होता है ,यानि की  हमारे दिमाग ने भी अपना ली होती है , इसलिए इतने समय बाद हम उन पे लॉजिकली ध्यान नहीं दे पाते है, दिमाग उसका आदि हो जाता है । परम्परागत से मेरा आशय है की वे घटनाए जो हम बचपन से अब तक सुनते और महसूस करते आये है।
बचपन की अवस्था में इंसान नादान और मासूम होता है , उन्हें जो चीज़ बताई जाती है, या जो चीज़ देखता है या सुनता है , उसके लिए वही सही होता है। और बालपन की अवस्था में हम उस अवस्था में नहीं होते की हम कोई सवाल कर सके , क्योंकि सवाल तब उठाया जाता है ,जब दिमाग लॉजिकली सोचना शुरू कर दे , पर दिमाग लॉजिकली सोचना किशोरावस्था में शुरू करता है।  पर तब तक बहुत देर हो जाती है। और इसलिए उन बच्चो का दिमाग लॉजिकली देर से विकास करता है , जबकि वो किशोरावस्था में ही शुरू कर देना चाहिए था।
हमारे लिए वही पत्थर की लकीर होता है , जो हमारे बड़े बुजुर्गो ने कहा होता है। और चूँकि तब हमारे दिमाग का इतना विकास नहीं हुआ होता है की यह तर्क वितर्क कर सके। तो इसिलए शायद हमने ईश्वर के अस्तित्व पर भी सवाल नहीं खड़े किये।
और इसी वजह से यह बात अब हमें नयी नहीं लगती। न ही हमें ऐसी कोई बात अजीब लगती है। और हम आज भी अनहोनी के लिए काली बिल्ली को कोसते है।  बेचारी काली बिल्ली। वे बाते हमें अजीब नहीं लगती , क्योंकि वो होती आई है ,यह कोई नयी बात नहीं है , पहले भी हमने काली बिल्ली को कोस था और इसलिए आज भी कोसेंगे।  हमारे दिमाग ने उन बातो को संरक्षित कर लिया होता है।  जिसे मिटा पाना बहुत मुश्किल है। क्योंकि उनकी जड़े  दिमाग की काफी गहराई तक जा चुकी होती है। और ऐसी अथवा इससे सम्बन्धित बातो को दिमाग सीधे ही अंतिम प्रोसेस कर देता है।
हम को यह बाते हमारे माता पिता द्वारा हस्तांतरित की जाती है , और उन्हें उनके पिताजी द्वारा , और यह परम्पगत  क्रम चलता आ रहा है, और इस हस्तांतरण को ही हम परंपरा और संस्कार कहते है। हालाँकि संस्कार एक अलग चीज़ है एक अलग शब्द है , इसका इस से कुछ लेना देना नहीं है।
ऐसी कहानिया जिनमे शायद ही कुछ सच्चाई हो सकती है , सबको विरासत में मिलती आई है , और मिलती आ रही है।

देखा जाए तो इसमें किसी की गलती नहीं थी।  डर ने इंसान को इन सब बातो पे निर्भर रहने के लिए मजबूर कर दिया। यानि इससे डर दूर तो नहीं होता , बल्कि उससे लड़ने की हिम्मत मिल जाती है।

तो आज के लिए बस इतना ही , हम हाजिर होंगे जल्द ही , एक नए आर्टिकल के साथ। 
धन्यवाद 
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      जानने के लिए क्लिक करे             १. डर क्या है ?
२. ईश्वर का जन्म कैसे हुआ ?

 अगला आर्टिकल बहुत जल्द पोस्ट किया जाएगा। प्लीज अपन फीडबैक जरूर दिकियेगा निचे कमेंट बॉक्स में। 
                                                                                 धन्यवाद
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