अब सवाल यह उठता है की सभी ईश्वरो ने एक जैसे लोग कैसे बनाये। कहने का मतलब यह है की जरा सा भी फर्क नहीं रहा उनकी बनावट में। क्या उन्हें आपस में नक़ल की। नहीं नहीं ऐसे थोड़े ही कर सकते है हमारे ईश्वर । हमारे ईश्वर नक़ल नही कर सकते। तो कैसे संभव हो सकता है क़ि सब एक जैसे ही बन गए, मतलब बिलकुल फर्क ही नहीं । सबके एक जैसे हाथ पैर , सबके दो हाथ है तो सबके दो पैर , सबके उतनी आँखे उतने ही होठ , और सबकुछ मतलब एक जैसा ही है। जरा सा भी डिजाईन में चेंज नहीं आया।
या यूँ सोचु की सबको एक ही ईश्वर ने बनाया है। क्योंकि दूसरा यही ऑप्शन बचता है। अब अगर यह मानु , तो एक और सवाल उठ रहा है की इन्शानो को किसने बताया की उन्हें बनाने वाले अलग अलग भगवान है , जो ये इन्शान पूरी तरह से जूट गए अपने अपने ईश्वर की मार्केटिंग में।
बात समझ के बाहर है।
अब चलो ये बात भी जैसे तैसे करके मान लेते है , कड़वा है जबरदस्ती का लग रहा है पर फिर भी घूंट भर ही लेते है। मान ने में तो कोई बुराई है नहीं।
अब सवाल है उनसे जिन्होंने ने यह अफवाह फ़ैलाने में सोशल नेटवर्क का काम किया और दावा करते है कि "हमारा निर्माण किसी अलग अलग या एक ईश्वर के द्वारा किया गया है " . तो यह भी उनकी साथ ही साथ जिम्मेदारी बनती है कि कैसे ?
कैसे इसका प्रमाण देने की भी तुम्हारी ही जिम्मेदारी है, अऐसा दावा करते हो तो। वरना तुम्हे इस दावा करने का भी कोई हक़ नहीं है। तुम यह कह के छूट नहीं सकते की , "मुझे नहीं पता कैसे , पर क्योंकि मैंने इस ही सुना है , और ये ही सदियो से सुनते आ रहे है इसलिए मैं भी मान रहा हु और तुम्हे गर तुम भी मानना चाहिए। "
मेरी नजर में यह कोई जवाब नहीं है कि सब मानते है तो हमें भी मानना चाहिए या मानना होगा। जावा नहीं पता तो कोई गलत बात नही है , पर उसके एवज में तर्क के विपरीत दावा बिना सोचे समजे करने में अपनी बेवकूफी बया नहीं करे। और उस अप्रमाणिक घटना को आगे से आगे मानने पे मजबूर न किया जाए। हम अपनी आने वाली पीढ़ी को इन बातो से भ्रमित नही करना चाइये , उनके दिमाग पे असर होता है इन बातो का। उनकी लॉजिकल पावर कम होती जाती है।
हां !हमारी रचना जरूर हुई है। पर किसी के द्वारा हुई है , यह बात हजम नहीं होती। हमारा निर्माण भी ब्रह्माण्ड के निर्माण का एक पार्ट जरूर है। जो की प्राकतिक रूप से पृथ्वी के वातावरण के हिसाब से धीरे धीरे जो उचित हुआ वैसा रंग रूप होता गया और वातावरण के हिसाब से बनावट में सुधार होते गए । और जीवन का निर्माण हो गया और वक़्त के साथ पृथ्वी अपने आप में और उसमे रहने वाले तमाम घटको में सुधर करती रहती है।
अपने लक्ष्य पे ध्यान दीजिये इन बातो में कुछ न रखा।
भगवान ने इन्शान बनाना ही होता, तो पृथ्वी पे ही क्यों बनाया, कोई और जगह पे क्यों नहीं। बड़े भाई! कहने का मतलब है कि, ब्रह्मांड में और भी तो कई जगह है, कई गृह है। ..वहा भी तो बना सकते थे। और सभी ईश्वरो जो की अलग अलग धर्म को रिप्रेजेंट करते है , सबने अपने अपने लोगो को पृथ्वी पे ही क्यों लाके पटका , मेरा मतलब है कि बनाया। उनको ऐसे करन था न कि कोई "मंगल" पे बनाता , तो कोई "पृथ्वी" पे , तो कोई शायद "बुध" पे बनाता। झगड़ा ही नहीं रहता।
आप खुद समझदार है। सवाल करना आपका हक़ है। जवाब मांगने के साथ साथ सही और उचित जानकारी प्राप्त करना भी आपका हक़ है।
अगर आपके सवाल को दबाया जाता है तो मतलब साफ़ है वो चीज़ झूठी है , अथवा जवाब देने वाला भी उसका जवाब नहीं जानता।
धन्यवाद
प्लीज अपना फीडबैक जरूर दे, नीचे कमेंट बॉक्स में। सही लगे तो शेयर करे।
पुनः धन्यवाद्
Comments
Post a Comment
thnx for following