मुबारक हो आप बसंती हो , और आप नाचते बहुत अच्छा हो। ..........इसलिए आपको नाचना पड़ेगा।
इंसान की ये नाचने की फितरत ही है , जो उसे नाचने पे मजबूर कर देती है। सब नाच रहे है , इसलिए हमें भी नाचना है , क्योंकि और कुछ कर भी तो नहीं सकते न।
यह भेड़चाल और डर हमें विरासत में मिले है। और यह एक दम सच है, यह हमें विरासत में ही मिले है। हमने हमारी पीढियो को डरना सिखाया , हमने उन्हें सबको बिना सोचे समझे फॉलो करना सिखाया।
हमें बताया गया , यहाँ जो भी कुछ है सब ईश्वर ने बड़े प्यार से अपने हाथो से बनाया है। सब उन्ही का किया कराया है। उस से कुछ भी अछूता नहीं है।
हमारे पवित्र किताबो चाहे वो किसी भी धर्म की हो, में केवल मात्र इंसानो और इस धरती से सम्बंधित कहानिया लिखी गयी है। जबकि दूर ब्रह्माण्ड में कही और भी जीवन है। वो भी इसी चक्र का हिस्सा है। जिन्हें हम एलिअन्स allians कहते है। हमने हमारी किताबो में उनका जिक्र क्यों नहीं किया? क्या उनकी रचना ईश्वर ने नहीं की ?
ईश्वर(कुदरत ) का सम्मान करना अलग बात है, और अंधवविश्वास अलग बात। वो हर व्यक्तिविशेष की अलग अलग इच्छाओ की पूर्ति नहीं कर सकता, और मांगना जायज भी नहीं है , बहुत कुछ तो दे चूका है वो , और सबको बराबर ही दिया है। नहीं ही वो किसी व्यक्तिविशेष से बहुत ज्यादा खुश है , और नहीं किसी विशेष से नाराज है। उसे खुश करने के लिए खुद को अथवा दुसरो को यातनाए देने से कोई फायदा नहीं। तुम उसके द्वार पैदल नंगे पाँव जाओ या कार में।
उसका सम्मान जरुरी है , पर ये नाम सुनते ही आँखों पे पट्टी बांध देना , सरा सर बेवकूफी ही कहलाएगी।
इंसान की ये नाचने की फितरत ही है , जो उसे नाचने पे मजबूर कर देती है। सब नाच रहे है , इसलिए हमें भी नाचना है , क्योंकि और कुछ कर भी तो नहीं सकते न।
यह भेड़चाल और डर हमें विरासत में मिले है। और यह एक दम सच है, यह हमें विरासत में ही मिले है। हमने हमारी पीढियो को डरना सिखाया , हमने उन्हें सबको बिना सोचे समझे फॉलो करना सिखाया।
हमें बताया गया , यहाँ जो भी कुछ है सब ईश्वर ने बड़े प्यार से अपने हाथो से बनाया है। सब उन्ही का किया कराया है। उस से कुछ भी अछूता नहीं है।
हमारे पवित्र किताबो चाहे वो किसी भी धर्म की हो, में केवल मात्र इंसानो और इस धरती से सम्बंधित कहानिया लिखी गयी है। जबकि दूर ब्रह्माण्ड में कही और भी जीवन है। वो भी इसी चक्र का हिस्सा है। जिन्हें हम एलिअन्स allians कहते है। हमने हमारी किताबो में उनका जिक्र क्यों नहीं किया? क्या उनकी रचना ईश्वर ने नहीं की ?
अच्छा एक बात बताओ , यहाँ सर्वशक्तिमान कौन है ? आप या फिर ईश्वर ?
ईश्वर ही है ना । Then let him do his work. don't try to take place of him to make appropriate judgement for all. He doesn't has any branches of agencies and not even has any agent. He doesn't need you , you need him.
ईश्वर(कुदरत ) का सम्मान करना अलग बात है, और अंधवविश्वास अलग बात। वो हर व्यक्तिविशेष की अलग अलग इच्छाओ की पूर्ति नहीं कर सकता, और मांगना जायज भी नहीं है , बहुत कुछ तो दे चूका है वो , और सबको बराबर ही दिया है। नहीं ही वो किसी व्यक्तिविशेष से बहुत ज्यादा खुश है , और नहीं किसी विशेष से नाराज है। उसे खुश करने के लिए खुद को अथवा दुसरो को यातनाए देने से कोई फायदा नहीं। तुम उसके द्वार पैदल नंगे पाँव जाओ या कार में।
उसका सम्मान जरुरी है , पर ये नाम सुनते ही आँखों पे पट्टी बांध देना , सरा सर बेवकूफी ही कहलाएगी।
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thnx for following