ईश्वर और इंसान।
दोनों का काफी पुराण नाता है।
हाँ , ये सिर्फ इन दोनों के बिच की बात ही है, कोई अन्य जीव इसमें शामिल नहीं है।
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हमारे ईश्वर ने जानवरो के साथ बहुत भेदभाव किया है। उसने जानवरो को हिन्दू, मुस्लिम, सिख अथवा इशाई नहीं बनाया, जबकि इंसानो को उन्होंने इस प्रकार की सुविधा दे रखी है। उन बेचारे बेजुबान जानवरो को ऐसे ही छोड़ दिया बिना किसी धर्म के।
ईश्वर शायद उन्हें अपनी रचना नहीं मानता , या फिर धरती का जीव नहीं मानता ? क्या वो उनपर अपनी दया दृष्टि नहीं डालना चाहता ? या शायद ईश्वर उनसे कोई बदला लेना चाहता है। इसीलिए वो अपने सबसे प्यारे बच्चो यानि इंसानो को उन जानवरो की बलि चढाने को कहता है। मैं नहीं जनता ईश्वर उन बेजुबानो से इतना नाराज क्यू है ? पर अगर है तो शायद कही न कही उन जानवरो ने हमारे ईश्वर से कोई बैर लिया होगा।
कही इसलिए तो नहीं क्योंकि वे कुसंगठित जानवर उनकी पूजा नहीं करते या नहीं कर पाते ?
या इसीलिए की वो बददिमाग जानवर ईश्वर का प्रचार प्रसार नहीं करते, और ईश्वर को लाइम लाइट में लाने के लिए कोशिस तक नहीं करते। हां , भले ही वो आज सबसे ज्यादा रेटिंग वाली ब्रांड है , पर वो तो सिर्फ इंसानो की मेहरबानी से , इसमें जानवरो की क्या भागीदारी , इसिलए उन्हें बलि चढ़ा दो। उन जानवरो को ये नहीं पता की जो ईश्वर का प्रचार करता है , ईश्वर का लाडला बन जाता है। और देखो वो नासमझ ये नहीं समझ पाए, और उन्हें ईश्वर की करुणा , दया का सौभाग्य न मिल पाया।
उन बददिमाग जानवरो को यह नहीं पता की इस धरती पर आजादी से जीने के लिए ईश्वर न केवल जरुरी है , बल्कि अनिवार्य है। अन्यथा ईश्वर्र तुम्हे सजा दे या न दे पर उनके लाडले भक्त जरूर तुम्हारी राह का रोड़ा बन जाएंगे।
वाकई ईश्वर और इंसान का काफी गहरा नाता है।
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अब सिक्के का दूसरा पहलु :
आपने ईश्वर की कई तस्वीरे देखि होंगी। कुछ तस्वीरो में आप साफ देख सकते हो , की ईश्वर जानवरो से बेहद प्यार करते है। नहीं मैं किसी विशेष ईश्वर की तस्वीर नहीं लगा रहा हु। क्योंकि में किसी एक सुमदाय के बारे में बात नहीं कर रहा हु। और मैं नहीं चाहता की आप उसे आपके अकेले के समुदाय से जोड़ कर देखे।
तो तस्वीरो से साफ़ जाहिर है की ईश्वर जानवरो से बेहद प्यार करते है। और वे उनके साथ हस्ते खेलते है।
सिक्का पलटते ही हमारी धारणा धरी की धरी रह गयी, सब कुछ बदला हुआ सा है इस तरफ ।
सिक्के के इस पहलु के अनुसार तो ईश्वर जानवरो से बेहद प्यार करता है। जबकि पहल मामले में बात कुछ और थी।
अब यह तो एक नयी प्रॉब्लम हो गयी। अब तो ऐसा लगता है , की भगवन ने जानवरो को विभिन्न धर्मो में नही बांटा। इसीलिए वे खुश ह , और भगवन भी उनके साथ खुश है।
"तो क्या ईश्वर को एक सुखी संसार बनाने के लिए विभिन्न धर्म ही नहीं बनाने चाहिए थे।"
यानि की भगवन को तो केवल इंसानो से नफरत थी। इसीलिए उन्हें धर्म के जंजाल में बांध कर उन्हें बर्बाद करने की पूरी साजिश की हुई है। वे चाहते ही नहीं थे की इंसान आपस में घुल मिल कर रहे। उन्हें आपस में लड़वाने की ही इच्छा थी।
मुझे एक कहावत याद आ रही है , नाम है , "फूट डालो और राज करो "। अब तक मुझे लगता था की इस कहावत का जन्म अंग्रजो के ज़माने में हुआ है , पर अब लगता है की इसका इतिहास बहुत पुराण है। माफ़ करना पर मेने इस कहावत को ईश्वर से जोड़ के देखा तो, मामला और भी अनसुलझा हुआ लगता है। पर इस बारे में कभी और बात करेंगे।
निष्कर्ष :
अब मुश्किल यह थी कि यदि ईश्वर जानवरो से प्यार करते है , तो इंसानो द्वारा उन्हें मरवाते क्यू है? , उन्हें तड़पाते क्यू है? उनकी बलि क्यू मांगते है ? क्योंकि एक तर्क के अनुसार इंसान जो भी करता है वो सब ऊपर वाले की मर्जी के हिसाब से होता है। ऊपर वाले ने सबकी जीवन रचना को लिखा हुआ है , और एक प्रचलित डायलाग है न कि "होनी को कौन टाल सकता है"।
हो न हो , कुछ तो गड़बड़ है , हमारे समझने में, क्योंकि एक साथ दो बाते , जो की एक दूसरे की विपरीत है , एक साथ, एक ही समय में सही नहीं हो सकती।
निष्कर्ष कुछ भी नहीं निकला , जबकि कुछ और नए सवालो ने जन्म ले लिया । मेरा मानना है , और अनुभव भी है कि , जहा जवाब ढूढते हुए सवाल पे सवाल बनते रहते है। मतलब वहाँ शंका है। और शंका है वह झूठ की बुनियाद है, अथवा कही कुछ बनावटी है।
सच्ची अथवा तार्किक घटनाओ के जवाब तुरन्त मिल जाया करते है।
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