दोनों में से एक ही चीज़ सही हो सकती है , या तो हम सच्चे भक्त है, या फिर गुलाम।
गुलाम है, तो किसके , यातो शायद डर के , या फिर अपनी बेवकूफी के।
क्योंकि ईश्वर को गुलामो की जरूरत नहीं ,भक्तो की हो सकती है, पर ऐसे भक्तो का वो करेगा भी क्या , जो भेड़ चाल में यकीन रखते है , बजाय सवाल पूछने के। जो भी सुना उसे ही आखिरी सच मान लिया।
गुलाम है, तो किसके , यातो शायद डर के , या फिर अपनी बेवकूफी के।
क्योंकि ईश्वर को गुलामो की जरूरत नहीं ,भक्तो की हो सकती है, पर ऐसे भक्तो का वो करेगा भी क्या , जो भेड़ चाल में यकीन रखते है , बजाय सवाल पूछने के। जो भी सुना उसे ही आखिरी सच मान लिया।
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